लेखनी कहानी -भूल गए
भूल गए
महंगाई के दौर में आना जाना भूल गए,
रिश्वत के इस दौर में हाथ छुड़ाना भूल गए।
रोज नहाए हम तो लेकिन, मन को धोना भूल गए।
जब से तुझ से नजरें मिली, पलके गिराना भूल गए।
महंगाई के इस दौर में आना जाना भूल गए।
मोबाइल पर बातें होती मिलना जुलना भूल गए।
चिड़ियों की चहचहाहट सुनती ,भोर का उठना भूल गए।
प्रगति की इस दौड़ में अपना सब कुछ भूल गए।
जीवन की आपाधापी में दुनियादारी भूल गए।
महंगाई के इस दौर में राशन पानी भूल गए।
सांसे तो चलती है निरंतर , वृक्ष लगाना भूल गए।
वक्त बदल डाला इस जग ने, न जाने कितना बदलेगा।
एक दूजे से मिलकर रहना अब जग मे भूल गए ।
मात पिता को वृद्ध आश्रम भेजें, बड़ों की इज्जत भूल गए।
एकल हुए परिवार यहां महंगाई के दौर में,
सब कुछ बदल गया जीवन की इस दौड़ में।।
रचनाकार ✍️
मधु अरोरा
27.3.2022
प्रतियोगिता हेतु
Punam verma
28-Mar-2022 03:54 PM
Very nice
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Swati chourasia
28-Mar-2022 06:29 AM
बहुत ही सुंदर रचना 👌👌
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Sachin dev
27-Mar-2022 07:22 PM
बहुत ही बेहतरीन
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